*@ राकेश अचल की बेबाक कलमसे INDIA NEWS 24 Live 🎥 द्वारा साभार प्राप्त*
देश में राष्ट्रपति चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ देश में फिर से एक शीर्ष ध्रुवीकरण कहिए या प्रयोग को लेकर अटकलें शुरू हो गयीं हैं .अब परम्पराओं और योग्यताओं का युग नहीं है.अब प्रयोगों का युग है. सत्तारूढ़ भाजपा को पिछली बार की तरह इस बार भी देश और दुनिया को चौंकाना है .पिछली बार भी राष्ट्रपति पद के लिए रामनाथ कोविंद का नाम अप्रत्याशित रूप से देश के सामने आया था .
‘ देश का राष्ट्रपति कैसा हो ?’ ऐसा नारा आजतक भारतीय राजनीति में नहीं लगा,क्योंकि देश की आजादी के बाद देश के पास इस पद के लिए एक से बढ़कर एक योग्य नेताओं की पूरी फ़ौज देश के पास थी .कांग्रेस को 1947 से 2012 तक राष्ट्रपति चुनने में एक या दो अवसरों पर मुश्किलों का सामना करना पड़ा,अन्यथा देश में 16 राष्ट्रपतियों का चुनाव बड़ी ही आसानी से सम्पन्न होता रहा .कांग्रेस राज की अंतिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी थे .भाजपा ने 2017 में पहली बार अपने मन का राष्ट्रपति चुना था .परम्परा की बात करें तो भाजपा को उप राष्ट्रपति पद पर उप राष्ट्रपति बैंकैया नायडू को पदोन्नत करना था लेकिन ऐसा हो नहीं रहा ,क्योंकि भाजपा के मन में कुछ और है .
नए राष्ट्रपति पद को लेकर भाजपा को एक ऐसा प्रत्याशी चाहिए जो आने वाले दिनों में वर्तमान राष्ट्रपति की तरह महत्वाकांक्षी न हो ,प्रोटोकॉल की परवाह न करता हो और सरकार को मुश्किल में डालने की जुर्रत न करता हो .साथ ही जातीय गणित में भाजपा के लिए वोटों की राजनीतिक हिसाब से भी उपयोगी हो .भाजपा के सामने इस समय अनेक विकल्प हैं. दुनिया भर में अल्पसंख्यकों की घोर उपेक्षा और प्रताड़ना केलिए कथित रूप से बदनाम हुई भाजपा सरकार किसी अल्पसंख्यक को भी इस पद पर ला बैठाये तो किसी को कोई हैरानी नहीं होना चाहिए .गौर तलब है कि इस समय भाजपा के पास लोकसभा हो या राज्य सभा कहीं भी कोई मुस्लिम नेता नहीं है .राज्य सभा चुनावों में भी किसी अल्पसंख्यक को टिकिट नहीं दिया गया .
भाजपा का एक सपना जयप्रकाश नारायण के बिहार को भी जीतना रहा है. दुर्भाग्य से बीते चार दशक में जबसे भाजपा वजूद में आयी है बिहार में स्वतंत्र रूप से राज नहीं कर पायी है. बिहार में सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री कांग्रेस के रहे ,इसके बाद जन क्रांति दल ,कांग्रेस [ओ ],जनता दल ,सोशलिस्ट पार्टी, और राजद के मुख्यमंत्री रहे लेकिन भाजपा को कोई मौका नहीं मिला.बिहार में जेडीयू के साथ भाजपा जरूर चौथी बार सत्ता में है .अब भाजपा के सामने एक मात्र विकल्प ये है कि वो जेडीयू से सौदाकर सुशासन बाबू यानि नीतीशकुमार को राष्ट्रपति बनाये और बदले में भाजपा के शाहनवाज खान या सुशील कुमार मोदी को मुख्यमंत्री बनाकर अपना सपना पूरा कर ले .मुमकिन है कि नीतीश बाबू इस सौदे के लिए राजी भी हो जाएँ .
भाजपा और जेडीयू के खेमे ने हाल ही में सुनियोजित तरिके से नीतीश बाबू का नाम राष्ट्रपति पद के लिए चलाया भी है .नीतीश बाबू के मन में भी लड्डू फुट रहे होंगे ,लेकिन ये नाम अंतिम नाम नहीं है .अभी भी भाजपा ऐन मौके पर नागपुर के निर्देश पर किसी और को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी घोषित कर दे तो कोई बड़ी हैरानी नहीं होना चाहिए .भाजपा को दरअसल रष्ट्रपति पद पर कोई शाखामृग ही चाहिए जो संयोग से नीतीश बाबू हैं नहीं .भाजपा को नीतीश बाबू उतने भरोसेमंद भी नहीं लगते जितने कि रामनाथ कोविंद थे .नीतीश बाबू भाजपा के लिए कांग्रेस के शासन में राष्ट्रपति बनाये गए ज्ञानी जैल सिंह भी साबित हो सकते हैं .जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की नाक में दम कर दिया था .
राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा को तकनीकी रूप से बहुत ज्यादा परेशानी आने वाली नहीं है ,क्योंकि राज्य सभा में भी उसकी सदस्य संख्या पर्याप्त है ,लोकसभा में तो है ही ,ऐसे में शायद ही कोई दल भाजपा के प्रत्याशी का विरोध करे. भाजपा की कोशिश होगी कि राष्ट्रपति का चुनाव सर्वसम्मति से हो ,लेकिन ये तभी मुमकिन है जब भाजपा कांग्रेस समेत अनेक विपक्षी दलों के नेताओं को ईडी और सीबाईआई के जरिये सताना बंद करे .भाजपा के साथ कांग्रेस और अन्य दलों के सौहार्दपूर्ण रिश्ते नहीं हैं .यहां तक कि ममता बनर्जी और उद्धव ठाकरे तक भी भाजपा से नाराज हैं .इसलिए अभी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव में अपना कोई सांकेतिक प्रत्याशी नहीं उतारेगा .
अतीत में राष्ट्रपति पद के चुनाव में ‘ अंतरात्मा की आवाज ‘ का भी आव्हान किया जा चुका है .ये आव्हान कांग्रेस ने खुद किया था और इसमें उसे आंशिक कामयाबी भी मिली थी .भाजपा के सामने इस समय ऐसी कोई परिस्थिति नहीं है. भाजपा में राष्ट्रपति पद के लिए न कोई दावेदार है और न कोई ऐसा नेता जो पार्टी नेतृत्व को इस मामले में दबाब में ले सके .भाजपा के सहयोगी दलों में भी जेडीयू को छोड़कर कोई ऐसा दल नहीं है जो भाजपा को आँख दिखा सके .भाजपा के पास विपक्ष को मैनेज करने वाले नेताओं की भी कमी नहीं है .भाजपा के पास एक से बढ़कर एक मैनेजर हैं जो पार्टी के लिए कुछ भी त्याग सकते हैं ,कहीं भी माथा टेक सकते हैं .किसी के लिए भी गगरौनी गा सकते हैं .
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान कर दिया गया है। 18 जुलाई को मतदान की तिथि निर्धारित की गई है। वहीं 21 जुलाई को परिणाम जारी किया जाएगा। इसके लिए 29 जून तक नामांकन किए जा सकेंगे। आयोग ने बताया है कि राष्ट्रपति चुनाव की हर प्रक्रिया की वीडियोग्राफी कराई जाएगी।
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर दरअसल, कुछ दिनों से बीजेपी और जेडीयू के रिश्ते में काफी नजदीकियां देखी जा रही हैं। इतनी मिठास तब दिखाई दे रही है जब दोनों पार्टियां कई मुद्दों पर बिल्कुल विपरीत राय रखती हैं। अब बिहार की राजनीति पर नजर रखने वालों के लिए तो ये सवाल जरूर होगा कि आखिर ‘इस प्यार’ से क्या नाम दिया जाए ? दोनों दलों के बीच बढ़ती इसी मिठास की वजह से अटकलें लगाई जा रहीं है कि भीतर ही भीतर कहीं न कहीं गुड़ फूट रहा है .भाजपा इस चुनाव के बहाने देश-दुनिया में अपने खिलाफ बने वातावरण को बदलने के लिए कुछ तमाशा कर सकती है. शिगूफे छोड़ सकती है .ताकि लोग उलझे रहें .
*(@ राकेश अचल ) की कलमसे साभार✍️*